डिजिटल प्लेटफार्म की ऐसी खूबी जो बैंकों को ले डूबी | Digital Platform Ki Aisi Khubi jo Bank Ko le dubi

लोग पहले  बैंकों बढ़ती  दरों  का  रोना  रोते  रहते  थे, मगर  अब  बैंक वाले  भी सिर  पकड़कर बैठ  गए  हैं।  आज  देश  में  यूपीआई ने कैशलेस इकोनॉमी की चांदी कर दी  है । 

डिजिटल प्लेटफार्म की ऐसी खूबी जो बैंकों को ले डूबी | Digital Platform Ki Aisi Khubi jo Bank Ko le dubi

डिजिटल  प्लेटफार्म  की ऐसी  खूबी  जो बैंकों  को ले डूबी | Digital Platform Ki Aisi Khubi jo Bank Ko le dubi

डिजिटल  प्लेटफार्म  की ऐसी  खूबी  जो बैंकों  को ले डूबी

उसमे  निरंतर  वृद्धि  हो रही है । जिससे   डिजिटल लेनदेन आसान हो  गया है। इसी वजह से बीते चार साल में वैल्यू के हिसाब से रिटेल डिजिटल पेमेंट में यूपीआई की हिस्सेदारी  अब दोगुनी हो गई है। लेकिन बैंकों, एनबीएफसी और फिनटेक कंपनियों की फी इनकम करीब एक तिहाई घटकर कम   हो गई  है। इन  सभी  का आय का  साधन  यूपीआई ट्रांजेक्शन नहीं है।

कैसे  कम हुई  बैंकों  की “Fee” इनकम

विश्लेषकों कहते  है  कि  यूपीआई ट्रांजेक्शन बढ़ने से बैंकों की fee  इनकम घट  गई  है । जैसे चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में एक्सिस बैंक की कुल फी इनकम में रिटेल कार्ड फी के तौर पर होने वाली आय घटकर 1.9% रह गई  है  और  यहीं  इनकम  चार साल पहले 2.5% हुआ  करती  थी। अन्य बैंकों की भी हालत  कुछ ऐसी  ही है।

एचडीएफसी सिक्योरिटीज के विश्लेषकों  तो यह  लिखते है कि पेमेंट प्रोसेसिंग बिजनेस में बढ़ती प्रतिस्पर्धा  पहले  से ही थी, पर अब  यूपीआई के माध्यम से ट्रांजेक्शन बढ़ने की वजह से पूरे इकोसिस्टम में पेमेंट्स फी के तौर पर होने वाली आय लगातार  कम  होती जा रही है। 

बैंकों  को एमडीआर पेमेंट पूल से  हुआ  फायदा, मगर नुकसान भी ज्यादा

एमडीआर पेमेंट पूल में बैंकों की  इनकम में  बढ़ोतरी  होती  है, कारण  क्रेडिट  कार्ड  बैंक  के द्वारा  ही  जारी होते हैं।   बैंक कार्ड-आधारित पेमेंट और अन्य डिजिटल ट्रांजेक्शंस के लिए तो मर्चेंट से शुल्क ले लेते  हैं।  मगर  उनकी पेमेंट  सीमा यही  तक सीमित  है। वह  यूपीआई पेमेंट के लिए  कोई भी  शुल्क नहीं ले सकते हैं।

2019 से यूपीआई ट्रांजेक्शन  मुफ्त  होने से  कैशलेस इकॉनमी  में  वृद्धि 

आज मुफ्त और आसान सर्विस मिलने की वजह से  ही यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) का इस्तेमाल साल दर साल तेजी से बढ़ता जा  रहा है।  पर वित्त वर्ष 2021-22 के पहले 9 महीनों में ही पर्सन-टू-मर्चेंट पेमेंट्स में यूपीआई की हिस्सेदारी 42% हो गई थीं, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 28% थी। स्थिति अब  यह  है   कि वैल्यू के हिसाब से फरवरी में करीब 80% रिटेल डिजिटल पेमेंट यूपीआई प्लेटफॉर्म के माध्यम  से हुई  है। आईएमपीएस और निफ़्ट जैसे तरीकों से लेनदेन करना  इसमें शामिल नहीं  किया गया  है।

बीते  वर्षो  में  तो  हर डिजिटल ट्रांजेक्शन के लिए मर्चेंट्स को पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर को एमडीआर चुकाना ज़रूरी  होता  था।  मगर 2019 में हमारी सरकार  ने   डिजिटल  पेमेंट  सिस्टम  को  ज़्यादा  बढ़ावा  देने के लिए  यूपीआई ट्रांजेक्शन में मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) जीरो  कर दिया था।

जाने  किस  प्रकार   4   साल  में  यूपीआई का लेन-देन 38% से बढ़कर 81% हो गया

ट्रांजैक्शन मोड     2018-19         2019-20             2020-21              2021-22

यूपीआई ​​​​​​               38%                56%                 73%                 81%

डेबिट कार्ड         26%               19%                 12%               07%

क्रेडिट कार्ड           26%               19%                 11%             09%

प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट्स 09%                 06%               04%              03%

यह  आंकड़ा  2021-22 फरवरी का है और  जिसे मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज द्वारा  दिया  गया  है । ये आँकड़े  हमें  बताते  है कि मशीनी  युग  की   मार  सिर्फ  इस  देश  का किसान  नहीं  झेलता  बल्कि डिजिटलाइजेशन  होने  की वजह  से  कुर्सी  पर  बैठा  अधिकारी  भी  सोच में  पड़ जाता  है। सरकारी  बैंकों    के कर्मचारियों   की  सैलरी  तो सरकार  टैक्स  वसूल  करके  ले ही लेगी । मगर  प्राइवेट  बैंक  के लिए  यह अच्छी-खासी  चिंता  का विषय  है । 

Read Also: राजस्थान सरकार का बड़ा तोहफा सबको मिलेगी 50 यूनिट तक फ्री बिजली

Leave a Comment