Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी.
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश की बूँद को इस ज़मीन से,
यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है!
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन,
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ ।
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ ।
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
तन्हाई अच्छी लगती है
सवाल तो बहुत करती पर,.
जवाब के लिए
ज़िद नहीं करती..
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
“खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते,
बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते !”
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता,
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।
आइना देख कर तसल्ली हुई,
हम को इस घर में जानता है कोई।
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
आदत इस की भी आदमी सी है।
मोहब्बत आपनी जगह,
नफरत अपनी जगह
मुझे दोनो है तुमसे.
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो,
नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा कोई जवाब नहीं!
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
तजुर्बा कहता है रिश्तों में फैसला रखिए,
ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती है…
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
रात को भू कुरेद कर देखो,
अभी जलता हो कोई पल शायद!
कोई समझे तो
एक बात कहूँ साहब..,
तनहाई सौ गुना बेहतर है
मतलबी लोगों से..!
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
अगर कसमें सब होती,
तो सबसे पहले खुदा मरता!
हम अपनों से परखे गए हैं कुछ गैरों की तरह,
हर कोई बदलता ही गया हमें शहरों की तरह….!
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर,
तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था!
तुम लौट कर आने की तकलीफ़ मत करना,
हम एक ही मोहब्बत दो बार नहीं किया करते!
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
जागना भी काबुल है तेरी यादों में रातभर,
तेरे अहसासों में जो सुकून है वो नींद में कहाँ!
तमाशा करती है मेरी जिंदगी,
गजब ये है कि तालियां अपने बजाते हैं!
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
वो चीज जिसे दिल कहते हैं,
हम भूल गए हैं रख कर कहीं!!
हाथ छुटे तो भी रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख से रिश्ते नहीं तोड़ा करते!
वफा की उम्मीद ना करो उन लोगों से,
जो मिलते हैं किसी और से होते है किसी और के…!
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
सहर न आई कई बार नींद से जागे
थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
आज मैंने खुद से एक वादा किया है,
माफ़ी मांगूंगा तुझसे तुझे रुसवा किया है,
हर मोड़ पर रहूँगा मैं तेरे साथ साथ,
अनजाने में मैंने तुझको बहुत दर्द दिया है।
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
इतने लोगों में कह दो अपनी आँखों से,
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे, लोग मेरा नाम जान जाते हैं!
मंजर भी बेनूर था और
फिजायें भी बेरंग थीं
बस फिर तुम याद आये
और मौसम सुहाना हो गया!
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
जब भी ये दिल उदास होता है,
जाने कोन दिल के पास होता है!
कभी तो चौक के देखे कोई हमारी तरफ़,
किसी की आँखों में हमको भी को इंतजार दिखे
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती हैं,
और कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता।
हसरत थी दिल में की एक खूबसूरत महबूब मिले,
मिले तो महबूब मगर क्या खूब मिले।
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
उनके दीदार के लिए दिल तड़पता है,
उनके इंतजार में दिल तरसता है,
क्या कहें इस कम्बख्त दिल को..
अपना हो कर किसी और के लिए धड़कता है।
बदल जाओ वक़्त के साथ या वक़्त बदलना सीखो,
मजबूरियों को मतं कोसो, हर हाल में चलना सीखो!
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर,
तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था!
तुझे पाने की जिद थी
अब भुलाने का ख्वाब है,
ना जिद पूरी हुई और
ना ही ख्वाब…
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
सब तरह की दीवानगी
से वाकिफ हुए हम,
पर मा जैसा चाहने वाला
जमाने भर में ना था ! “
कोई आहट नही बदन की कहीं
फिर भी लगता है तू यहीं है कहीं
वक्त जाता सुनाई देता है
तेरा साया दिखाई देता है
इश्क़ की तलाश में
क्यों निकलते हो तुम,
इश्क़ खुद तलाश लेता है
जिसे बर्बाद करना होता है।
सालों बाद मिले वो
गले लगाकर रोने लगे,
जाते वक़्त जिसने कहा था
तुम्हारे जैसे हजार मिलेंगे..
उम्मीद तो नही
फिर भी उम्मीद हो
कोई तो इस तरह
आशिक़ शहीद हो
वो हमे भूल ही गए होंगे
भला इतने दिनों तक
कौन खफा रहता है..
उतार कर फेंक दी उसने
तोहफे में मिली पायल,
उसे डर था छनकेगी तो
याद जरूर आऊंगा मै..
आखिरी नुकसान था तू जिंदगी में,
तेरे बाद मैंने कुछ खोया ही नहीं..
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
कुछ अलग करना हो तो
भीड़ से हट के चलिए,
भीड़ साहस तो देती हैं
मगर पहचान छिन लेती हैं
मेरी कोई खता तो साबित कर,
जो बुरा हूँ तो बुरा तो सभीत कर!
तुम्हें चाहा है कितना तू जा जाने,
चल में बेवफा ही सही.. तू अपनी वफ़ा तो साबित कर!!
अच्छी किताबें और अच्छे लोग
तुरंत समझ में नहीं आते हैं,
उन्हें पढना पड़ता हैं
सुनो…
जब कभी देख लुं तुमको
तो मुझे महसूस होता है कि
दुनिया खूबसूरत है
तुम्हारी खुशियों के ठिकाने बहुत होंगे,
मगर हमारी बेचेनियों की वजह बस तुम हो!
मैं दिया हूँ
मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं
कौन कहता है हम झूंठ नहीं बोलते,
एक बार खैरियत पुछ कर तो देखिये!
गुलजार की दो लाइन शायरी
बहुत अंदर तक जला देती हैं,
वो शिकायते जो बया नहीं होती
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
थोड़ा है थोड़े की जरूरत है,
ज़िन्दगी फिर भी यहाँ खुबसूरत है!
तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,
जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं
मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिये,
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ, बे-इन्तहां हूँ में!
घर में अपनों से उतना ही रूठो
कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत,
दोनों बरक़रार रह सके
देख दर्द किसी और का आह दिल से निकल जाती है,
बस इतनी सी बात तो आदमी को इंसान बनाती है!
कौन कहता हैं कि हम झूठ नहीं बोलते
एक बार खैरियत तो पूछ के देखियें
कुछ बातें तब तक समझ में नहीं आती
जब तक ख़ुद पर ना गुजरे
जख्म कहाँ-कहाँ से मिले हैं छोड़ इन बातों को,
ज़िन्दगी तू तो बता, सफ़र और कितना बाकी है!
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
जख्म कहाँ-कहाँ से मिले हैं छोड़ इन बातों को,
ज़िन्दगी तू तो बता, सफ़र और कितना बाकी है!
वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं,
हम भूल गए हैं रख के कहीं
झूंठे तेरे वादों पर बरस बिताए,
ज़िन्दगी तो काटी बस अब यह रात कट जाए!
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,
रात भी आयी और चाँद भी था, मगर नींद नहीं
खुद से ज्यादा सम्हाल कर रखता हूँ मोबाईल अपना,
क्यों की रिश्ते सारे अब इसी में कैद है!
कभी तो चौक के देखे वो हमारी तरफ़,
किसी की आँखों में हमको भी वो इंतजार दिखे
में तो चाहता हूँ हमेशा मासूम बने रहना,
ये जो ज़िन्दगी है समझदार किए जाती है!
तेरे जाने से कुछ बदला तो नहीं,
रात भी आई थी और चाँद भी , मगर नींद नहीं…
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
कैसे करें हम ख़ुद को
तेरे प्यार के काबिल,
जब हम बदलते हैं,
तो तुम शर्ते बदल देते हो
जैसे कही रख के भूल गए हो वो,
बेफिक्र वक़्त अब मिलता ही नहीं!
किसी पर मर जाने से होती हैं मोहब्बत,
इश्क जिंदा लोगों के बस का नहीं
जिसकी आँखों में कटी थी सदियाँ,
उसी ने सदियों की जुदाई दी है!
तन्हाई की दीवारों पर
घुटन का पर्दा झूल रहा हैं,
बेबसी की छत के नीचे,
कोई किसी को भूल रहा हैं
कभी ज़िन्दगी एक पल में गुज़र जाती है,
कभी ज़िन्दगी का एक पल नहीं गुज़रता!
शोर की तो उम्र होती हैं
ख़ामोशी तो सदाबहार होती हैं
कुछ अधूरे से लग रहे हो आज,
लगता है किसी की कमी सी है!
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
वक्त रहता नहीं कही भी टिक कर,
आदत इसकी भी इंसान जैसी हैं
हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक्त की शाख से लम्हें नहीं तोडा करते
कोई पूछ रहा है मुझसे अब मेरी ज़िन्दगी की कीमत,
मुझे याद आ रहा है हल्का सा मुस्कुराना तुम्हारा!
दिल अगर हैं तो दर्द भी होंगा,
इसका शायद कोई हल नहीं हैं
दिन कुछ ऐसे गुज़रता है कोई,
जैसे अहसान उतारता है कोई…
आइना देख कर तस्सली हुई,
हमको इस घर में जनता है कोई!
एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा
ना दिल में कसक होगी, ना सर में जूनून होगा
ज़िन्दगी यूँ हुई बरस तन्हा,
काफिला साथ और सफ़र तन्हा!
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
लकीरें हैं तो रहने दो
किसी ने रूठ कर गुस्से में शायद खींच दी थी
उन्ही को अब बनाओ पाला, और आओ कबड्डी खेलते हैं
खुशबु जैसे लोग मिले अफसाने में,
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में!
छोटा सा साया था, आँखों में आया था
हमने दो बूंदों से मन भर लिया
बचपन के भी वो दिन क्या खूब थे,
ना दोस्ती का मतलब था न मतलब की दोस्ती थी!!.
सामने आया मेरे, देखा भी, बात भी की
मुस्कुराए भी किसी पहचान की खातिर
कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया
मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी है, शौर भी है…
तूने देखा ही नहीं आँखों में कुछ और भी है!
बेहिसाब हसरते ना पालिये
जो मिला हैं उसे सम्भालिये
अपने साए से चौक जाते हैं हम,
उम्र गुजरी है इस कदर तनहा!
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,
वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं,
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन जिनगी तो नहीं!
अगर कसमें सब होती,
तो सबसे पहले खुदा मरता!
रात को भू कुरेद कर देखो,
अभी जलता हो कोई पल शायद!
बीच आसमाँ में था
बात करते- करते ही
चांद इस तरह बुझा
जैसे फूंक से दिया
देखो तुम….
इतनी लम्बी सांस मत लिया करो
जागना भी काबुल है तेरी यादों में रातभर,
तेरे अहसासों में जो सुकून है वो नींद में कहाँ!
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर,
तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था!
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
हाथ छुटे तो भी रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख से रिश्ते नहीं तोड़ा करते!
सूरज झांक के देख रहा था खिड़की से
एक किरण झुमके पर आकर बैठी थी,
और रुख़सार को चूमने वाली थी कि
तुम मुंह मोड़कर चल दीं और बेचारी किरण
फ़र्श पर गिरके चूर हुईं
थोड़ी देर, ज़रा सा और वहीं रूकतीं तो
जागना भी काबुल है तेरी यादों में रातभर,
तेरे अहसासों में जो सुकून है वो नींद में कहाँ!
आओ तुमको उठा लूँ कंधों पर
तुम उचकाकर शरीर होठों से चूम लेना
चूम लेना ये चाँद का माथा
आज की रात देखा ना तुमने
कैसे झुक-झुक के कोहनियों के बल
चाँद इतना करीब आया है
ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र के साथ
बस बचपन की जिद्द समझौतों में बदल जाती हैं
आज दिल की ज़ेरोक्स निकलवाई,
सिर्फ बचपन वाली तस्वीरें ही रंगीन नज़र आई!
वो चीज जिसे दिल कहते हैं,
हम भूल गए हैं रख कर कहीं!!
बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला
जब से डिग्रियां समझ में आयी पांव जलने लगे हैं
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
कुछ जख्मो की उम्र नहीं होती हैं
ताउम्र साथ चलते हैं, जिस्मो के ख़ाक होने तक
थम के रह जाती है ज़िन्दगी,
जब जम के बरसती है पुरानी यादें!
इतने लोगों में कह दो अपनी आँखों से,
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे, लोग मेरा नाम जान जाते हैं!
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
ऐसा तो कभी हुआ नहीं,
गेल भी लगे और छुआ भी नहीं!
सिर्फ शब्दों से न करना,
किसी के वजूद की पहचान…
हर कोई उतना कह नहीं पाता,
जितना समझता और महसूस करता है!!
मौसम का गुरुर तो देखो,
तुमसे मिल के आया हो जैसे!
कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती हैं
और कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
समेट लो इन नाजुक पलो को
ना जाने ये लम्हे हो ना हो
हो भी ये लम्हे क्या मालूम शामिल
उन पलो में हम हो ना हो
मेरे दर्द को यूँ ही गुलज़ार रखना मेरे मौला,
ऐसा न हो इन खुशियों की आदत लग जाए!
बे सबब मुस्कुरा रहा है चाँद,
कोई साजिश छुपा रहा है चाँद!
ये खुशभ है गेसुओं की जैसे कोई गुलज़ार है,
की इतर से महका आज पूरा बाज़ार है!
उसने कागज की कई कश्तिया पानी उतारी और
ये कह के बहा दी कि समन्दर में मिलेंगे
दवा अगर काम न आए तो नज़र भी उतारती है,
ये माँ है साहब हार कहाँ मानती है!
यूँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे सफ़र से शिकायतें बहुत थी,
मगर दर्द जब दर्ज करने पहुंचे तो शिकायते बहुत थी!
में हर रात साडी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता हूँ,
हैरत यह है की हर सुबह यह मुझसे पहले जाग जाती है!
Gulzar Shayari In Hindi [गुलज़ार साहब की शायरियां]
टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ
में फिर से निखार जाना चाहता हूँ
मानता हूँ मुश्किल हैं…
लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ
बिगड़ैल हैं ये यादे
देर रात को टहलने निकलती हैं
दर्द की भी अपनी एक अदा है,
वो भी सहने वालों पर फ़िदा है!
आँखे थी जो कह गई सब कुछ,
लफ्ज़ होते तो मुकर गए होते!
नज़र झुका के उठाई थी जैसे पहली बार,
फिर एक बार तो देखो मुझे उसी नज़र से!
मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी है शौर भी है,
तूने देखा ही नहीं, आँखों में कुछ और भी है!
सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम
कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं
आओ जुबान बाँट ले अपनी-अपनी हम,
न तुम सुनोंगे बात न हमको समझना है!