नहीं है अब कोई जुस्तजू इस दिल में ए सनम,
मेरी पहली और आखिरी आरज़ू बस तुम हो।
Urdu Shayari in Hindi [उर्दू शायरी हिंदी]
इससे ज़्यादा तुझे और कितना करीब लाऊँ मैं,
तुझे दिल में रख कर भी तो मेरा दिल नहीं भरता।
सिर्फ ख्वाब होते तो क्या बात होती,
तुम तो ख्वाहिश बन बैठे, वो भी बेइंतहा…
भला मैं तुम्हारी मिसाल दूँ भी तो कैसे
जुल्म तो ये है कि बे-मिसाल हो तुम।
ऐ शख्स तेरा साथ मुझे हर शक्ल में मंज़ूर है,
यादें हों कि खुशबू हो, यक़ीं हो कि ग़ुमान हो।
मेरे लबों को चूमते वक्त जब,
वो अपनी नजरों को झुकाती है,
इस दिल का हाल अजीब सा होता है,
जब वो हौले से शरमाके मुस्कुराती है।
तेरे रुखसार पर ढले हैं मेरी शाम के किस्से,
खामोशी से माँगी हुई मोहब्बत की दुआ हो तुम।
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
तुम नहीं होते हो तो बहुत खलता है,
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
प्यार कितना है तुमसे पता चलता है
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
मंजिल भी तुम हो तलाश भी तुम हो,
उम्मीद भी तुम हो आस भी तुम हो,
इश्क भी तुम हो और जूनूँ भी तुम ही हो,
अहसास तुम हो प्यास भी तुम ही हो।
क्या दुःख है समन्दर को बता भी नहीं सकता
आंसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता।
तू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता।।
वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था।
कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है।।
क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना ।
मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है ।।
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है।
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है।।
बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए ।
हम एक बार तिरी आरजू भी खो देते ।।
कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है ।
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है।।
हम उसे आंखों की दहलीज़ न चढ़ने देते ।
नींद आती न अगर ख़्वाब तुम्हारे लेकर ।।
अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहाँ से हम ।
उठने को उठ तो आए तीरे आस्ताँ से हम ।।
लाग् हो तो उसको हम समझे लगाव ।
जब न हो कुछ भी , तो धोखा खायें क्या ।।
शबे इंतज़ार की कश्मकश ना पूछ
कैसे सहर हुई।
कभी एक चराग़ जला लिया,
कभी एक चराग़ बुझा दिया।।
थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ।
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ।।
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते।
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते ।।
सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की,
मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर।
कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।।
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई ।
जैसे एहसान उतारता है कोई ।।
मजरूह लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम।
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह ।।
रोक सकता हमें ज़िन्दाने बला क्या मजरूह ।
हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं ।।
ये आग और नहीं दिल की आग है नादां।
चिराग हो के न हो, जल बुझेंगे परवाने।।
नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब”।
किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और।।
न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है।
ये दुनिया है,, इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है ।।
ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार का है ।
यहीं संभाल के पहना, यहीं उतार चले ।।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है।।
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से ।
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से ।।
शोर की तो उम्र होती हैं ।
ख़ामोशी तो सदाबहार होती हैं।।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
अब तो ख़ुद अपने ख़ून ने भी साफ़ कह दिया ।
मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं ।।
सुब्ह होती है शाम होती है ।
उम्र यूँही तमाम होती है ।।
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ।
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता ।।
शमा भी, उजाला भी मैं ही अपनी महफिल का ।
मैं ही अपनी मंजिल का राहबर भी, राही भी ।।
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे ।
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर ।।
अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा ।
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा ।।
वो बारिश में कोई सहारा ढूँढता है फ़राज़ ।
ऐ बादल आज इतना बरस
की मेरी बाँहों को वो सहारा बना ले ।।
उसकी जफ़ाओं ने मुझे
एक तहज़ीब सिख दी है फ़राज़।
मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर
शिकवा नहीं करता ।।
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में ।
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया।।
ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना।
थी आरजू तेरे दर पे सुबह-ओ-शाम करें ।।
मैं चुप कराता हूं हर शब उमड़ती बारिश को ।
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है।।
एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा ।
ना दिल में कसक होगी, ना सर में जूनून होगा।।
मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है ।
कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते ।।
ज़ूलफें ढल कर जब तेरे रुखसार पर आ गई
चौदहवीं के चाँद पर जैसे काली घटा छा गई..
एक भोली सी लड़की तकती हैं मुझे चुपके से
जब कभी नज़रें मिली तो हया से शरमा गई..
तू संग हैं तो फिर खौफ क्या मँझधार का
चौदहवीं का चाँद हैं या अक्स तेरे रुखसार का..
हैं आरज़ू इतनी ज़िन्दगी दगा दे तेरी गलीयों में
मेरा दम निकलने को हो मोहताज तेरे दीदार का..
कभी ना खत्म हो हमारी मोहब्बत के सिलसिले
हर जनम में मुझे चाहत बन कर सिर्फ तू मिले..
तेरी मुस्कुराहटों से होता हैं ये अहसास मुझे
किसी शाख पर जैसे कोई हसीन फूल खिले..
हुस्न तेरा गंगा किनारे खिलते कँवल जैसा हैं
चेहरा तेरा मीर की भड़कती गज़ल जैसा हैं..
सावन में भरते हैं जिसे देख कर आहें आशिक
वो बादल हवा में लहराते तेरे आँचल जैसा हैं..
गहराई में लफ्ज़ों की उतरना चाहता हूं
दिल की हर बात मैं तुमसे कहना चाहता हूं..
दीवाना हो चुका हूं तेरी यादों में इस कदर
अब इन्हीं खयालों में जिंदगी भर रहना चाहता हूं..
चलो किसी रोज हम तुम अकेले निकलते हैं
रखकर फोन घर में बस दोनों मिलते हैं..
खयाल रखा करो तुम खुद अपना..
तुम्हारे सिवा नहीं है मेरा कोई सपना..
ठंड बड़ी लग रही है आज..
प्यार का स्वेटर पहना दे कोई…!
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता..
तेरे जहान में ऐसा नहीं के प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता..
वो तो ख़ुशबू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसला फूल का है फूल किधर जाएगा..
हम तो समझे थे के एक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जाएगा..
क्यों न बेफिक्र हो कर सोया जाये अब बचा ही क्या है जो खोया जाये
होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है..
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है..
दिल में हवस रख कर
प्रेम की बाते करता है जमाना
बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे..
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिस के भी क़रीब रहे दूर ही रहे..
सज़ा तोह बहुत दी है ज़िन्दगी ने
पर कसूर क्या था मेरा यह नहीं बताया…!
Urdu Shayari in Hindi [उर्दू शायरी हिंदी]
क़ुबूल है मुझे जागना भी तेरी यादों में रात भर
एहसासों का सुकून तेरी, इन नींदों में कहां..
खत्म होने जैसा कुछ भी नहीं है यहाँ
हमेशा एक नई शुरुवात तुम्हारा इंतज़ार करती है…!
ज़िन्दगी आएसी एक स्टेशन है
भीड़ तोह बहुत है पर अपना कोई नहीं
वो करो जो दिल कहे
वो नही जो लोग चाहे
तुम्हे भूलने में कुछ वक़्त लगेगा
और वह कुछ वक़्त मेरी ज़िन्दगी है।
हम लड़के है
मोहोब्बत में जन्नत
और नफ़रत में औकात दिखा देते है
आँखों मे ख्वाब उतरने नही देता
वो शख्स मुझे चैन से मरने नही देता
बिछड़े तो अजब प्यार जताता है खतों मे
मिल जाए तो फिर हद से गुजरने नही देता।
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
बड़ी बरकत है
तेरे इश्क़ में जब से हुआ है,
कोई दूसरा दर्द ही नहीं होता।
हमनें हाथ फैला कर इश्क मांगा था,
सनम ने हाथ चूमकर जान निकाल दी।
कभी शब्दों में मत तलाशना वजूद मेरा
मैं उतना लिख नहीं पाता जितना महसूस करता हु
कर दे मेरे गुनाहों को माफ़ ए खुदा सुना है
सोने के बाद कुछ लोगों की सुबह नहीं होती।
अब मुझे उलझना नहीं आता
अब मैं हार मान जाता हु
नाराज़ वह हुआ करो
जहां तुम्हारी नाराज़गी की फ़िक्र हो
मोहोब्बत एक से रखेंगे
मगर नेक रखेंगे
मेरे दिल में घर बना कर वो मेरे दिल में छोड़ गया है
न खुद रहता है न किसी और को बसने देता है।
उम्र हर-चंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही।
हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बे-नियाज़ी तिरी आदत ही सही।
ना शौक दीदार का,
ना फिक्र जुदाई की,
बड़े खुश नसीब हैं वो लोग
जो मोहब्बत नहीँ करते।
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।
आसान नहीं है हमसे यूँ शायरी में जीत पाना,
हम हर एक लफ्ज़ मोहब्बत में हार कर लिखते हैं।
अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है
बुझे चराग़ को फिर से जलाना पड़ता है
ये और बात है घबरा रहा है दिल वर्ना
ग़मों का बोझ तो सब को उठाना पड़ता है
कोशिश भी कर उम्मीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर
कुछ देर ठहर और ज़रा देख तमाशा
नापैद हैं ये रौनक़ें इस ख़ाक से बाहर
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आए हैं उस की सम्त से पत्थर कभी कभी
वक़्त कितना भी मुश्किल आ जाये, वो बीतेगा जरूर .
तू कमी मत आने देना तेरी कोशिशों में,
यकीन रख तू जीतेगा जरूर..!!
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है.
हमनें हाथ फैला कर इश्क मांगा था,
सनम ने हाथ चूमकर जान निकाल दी
“काश तुम मेरे होते?”
साँस थम जाती
गर ये लफ्ज तेरे होते
ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहीं
मगर चराग़ जलाना तो इख़्तियार में है
जब भी बालाएं आयी
जीवन में तूफ़ाक़दमों में तख़्त औ ताज भी रखे गए मगर
हम से तुम्हारी याद का सौदा न हो सका।
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है.
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में ।
मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी ।।
कोई आप को अपना दिल ऐसे ही नहीं देता
उस ने आप पर भरोसा किया है उसे कभी दर्द न देना।
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
इस दिल का कहा मनो एक काम कर दो,
एक बे-नाम सी मोहब्बत मेरे नाम करदो।
मेरी ज़ात पर फ़क़त इतना अहसान कर दो,
किसी दिन सुबह को मिलो, और शाम कर दो।
यादों की किताब उठा कर देखी थी मैंने
पिछले साल इन दिनों तुम मेरे थे।
हो गए नाकाम तो पछताएँ क्या
दोस्तों के सामने शरमाएँ क्या
चलो घर कब्रिस्तान नहीं फ़सानों का जहान,
जिससे भी पूछोगे अपनी अपनी कहावत निकलेगी।
उम्र हर-चंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही।
मैं तो चाहता हूँ,
हमेशा मासूम बने रहना…
मगर ये जो ज़िन्दगी है,
समझदार किये जा रही है…!!
अपना सा मुँह लेकर खड़ा रह गया गली में मैं,
‘ख़त नहीं कोई तेरा’ कहके कासिद गुज़र गया..!!
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
.ये चंद दिन की दुनिया है ग़ालिब
यहाँ पलकों पर बैठाया जाता है
नज़रों से गिराने के लिए…!!
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
ज़िन्दगी की हक़ीक़त बस इतनी सी हैं,
की इंसान पल भर में याद बन जाता हैं
कोई पूछेगा तो सुबह का भूला कह देंगे,
तुम आओ तो सही,हम शाम को सवेरा कह देंगे..!!
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है..
सलीका पर्दे का,
भी अजीब रखा हैं
निगाहें जो कातिल हैं,
उन्हीं को खुला रखा हैं…जिंदगी एक आइना है
यहाँ पर बहुत कुछ छुपाना पड़ता है
दिल में हो लाखों गम फिर भी
महफ़िल में मुस्कुराना पड़ता है.
तारीफों के लायक न शोहरत का हकदार हूं,
सारी बिजली तो उसकी है, मैं तो बस तार हूं
वो मेरे चेहरे तक अपनी नफ़रतें लाया तो था,
मैंने उसके हाथ चूमे, और बे-बस कर दिया।
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,
वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था,
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का,
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का.अपनी सुदरता दर्पण में नहीं,
लोगों के ह्रदय में खोजें..!!
सिर्फ गुलाब देने से मोहब्बत हो जाती,
तो माली सारे शहर का महबूब बन जाता…!
हम किसी से खुशियां मांगे यह हमें मंजूर नहीं
मांगी हुई खुशियों से किसका भला होता है,
जितना अपनी तकदीर में लिखा है
वो जरूर अदा होता है
शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ शहर से आया होगा।
यूँ न किसी तरह कटी जब मिरी ज़िंदगी की रात
छेड़ के दास्तान-ए-ग़म दिल ने मुझे सुला दिया
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी
ऐसी दुआ न माँग जिसे बद-दुआ कहें
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से
मैं न कहता था कि मेरे घर में भी आएगी बहार,
शर्त बस इतनी थी कि पहले तुझे आना होगा।
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं,
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं।
मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला
जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता
हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सहीUrdu Shayari in Hindi [उर्दू शायरी हिंदी]
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ,
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई।
इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और
या इस में रौशनी का करो इन्तिज़ाम और
मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता,
दिल उससे मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता..!
ग़जब की धूप है शहर में मगर
दिल किसी का भी पिघलते नहीं देखा मैंने .
एहसान ये रहा तोहमत लगाने वालों का मुझ पर,
उठती उँगलियों ने मुझे मशहूर कर दिया।
तुम होते कौन हो
मेरे ना होने वाले
ये दुनिया ग़म तो देती है शरीक-ए-ग़म नहीं होती,
किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती…कल मैं चालाक था,
इसलिए मैं दुनिया बदलना चाहता था,
आज मैं बुद्धिमान हूँ, इसलिए मैं
अपने आप को बदल रहा हूँ।
-सूफी संत जलालुद्दीन रूमी
बहुत गुरूर था छत को छत होने पर,
एक मंजिल और बनी छत फर्श हो गई..!
क़ाफ़िले में पीछे हूँ कुछ बात है वरना,
मेरी ख़ाक भी ना पाते मेरे साथ चलने वाले।
एक रात वो गए थे जहाँ बात रोक के
अब तक वहीं रुका हुआ हूँ वही रात रोक के
हमें शायर समझ के यूँ नजर अंदाज मत करिये,
नजर हम फेर ले तो हुस्न का बाजार गिर जायेगा।
ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है,
बुलंदी से कभी ज़र्रों का अंदाज़ा नहीं होता।
तुम्हारी आँख के आँसू हमारी आँख से निकले
तुम्हे फिर भी शिकायत है मोहब्बत हम नहीं करते
तारीफों के लायक न शोहरत का हकदार हूं,
सारी बिजली तो उसकी है, मैं तो बस तार हूं
जिंदगी एक आइना है
यहाँ पर बहुत कुछ छुपाना पड़ता है
दिल में हो लाखों गम फिर भी
महफ़िल में मुस्कुराना पड़ता है.